Tuesday, August 19, 2014

यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

PICS: यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

तस्‍वीर में: वृंदावन का नि‍धि‍वन, कहा जाता है कि‍ यहां हर रात होती है राधा-कृष्‍ण की रासलीला।
 
लखनऊ. श्रीकृष्ण की तरह ही उनकी लीलाएं भी अपरम्‍पार हैं। कृष्ण लीलाओं के चर्चे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। उन्हीं में से एक लीला है रासलीला। मान्यता है कि वृंदावन में स्थित निधिवन में गोपियों संग कृष्ण रास रचाते थे और यह क्रम आज भी जारी है। इसलिए सुबह से दर्शन के लिए खुला रहने वाला निधि वन शाम को बंद हो जाता है। वहां कोई नहीं रुकता। 
 
वहां के बारे में मान्यता यह भी है कि जो भी रुका उसने या तो अपना मानसिक संतुलन खो दिया या फिर उसकी मौत हो गई। निधि वन के मुख्य गोसाईं भीख चंद्र गोस्वामी की मानें तो बंदर और चिड़िया भी शाम होते ही इसे खाली कर देते हैं। दि‍नभर उनकी मौजूदगी के बाद शाम होते ही सन्‍नाटा छा जाता है। उनका कहना है कि सिर्फ निधि वन ही नहीं बल्कि थोड़ी दूर स्थित सेवाकुंज में भी गोपाल-कृष्णा रास रचाते हैं जोकि राधा रानी का मंदिर है। 
 
छिपकर देखी रासलीला और खो गया मानसि‍क संतुलन 
 
गोसाईं भीख चन्द्र गोस्वामी एक वाक्य याद करते हुए बताते हैं कि करीब दस साल पहले संतराम नामक एक राधा-कृष्‍ण का भक्त था। वह जयपुर से आया था। वह भगवान की भक्ति में इतना लीन हो गया कि उसने रासलीला देखने की ठान ली और चुपके से नि‍धि‍वन में छिपकर बैठ गया। सुबह जब मंदिर के पट खुले तो वह बेहोश था। संतराम जब होश में आया तो वह अपना मानसिक संतुलन खो चुका था। 
 
संतराम को उसके परिवार के पास जयपुर भिजवाने वाले वृंदावन के स्थानीय निवासी कृष्णा शर्मा ने कहा- 'ऐसी कई घटनाएं मैंने भी सुनी हैं, लेकिन संतराम के साथ जो हुआ उसका मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं। वह कहते हैं कि करीब पांच साल बाद संतराम ठीक होकर फिर वृंदावन आया था। जैसे ही वह निधिवन की ओर बढ़ा, एक बार फिर वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा।'

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पवित्र है निधिवन की भूमि
 
निधि वन की भूमि इतनी पवित्र है कि वहां जो पेड़ आसमान की ओर बढ़ने चाहिए, उनकी डालें नीचे जमीन की ओर आती हैं। इस बाबत मुख्य गोसाईं भीख चन्द्र गोस्वामी कहते हैं कि यहां नंद गोपाल की चरणों में सिर्फ भक्त ही नहीं, बल्कि पेड़ पौधे भी उनकी मिट्टी में ही समा जाना चाहते हैं। इसलिए यह पेड़ हमेशा जमीन की ओर बढ़ते हैं। आलम यह है कि रास्ता बनाने के लिए इन पेड़ों को डंडे के सहारे रोका गया है।

राधा और कृष्ण के लिए सजती है सेज
 
भीख चन्द्र गोस्वामी बताते हैं कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, निधि वन के अंदर बने 'रंग महल' में रोज रात को कन्हैया आते हैं। रंग महल में राधा और कन्हैया के लिए रखे गए चंदन की पलंग को शाम सात बजे के पहले सजा दिया जाता है। पलंग की बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है।
 
सुबह पांच बजे जब 'रंग महल' का पट खुलता है तो बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली, दातुन कुची
हुई और पान खाया हुआ मिलता है। ऐसी मान्यता है कि‍ रात के समय जब कन्हैया आते हैं तो राधा जी रंग महल में श्रृंगार करती हैं। चंदन की पलंग पर कन्हैया आराम करते हैं। उसके बाद राधा जी के संग 'रंग महल' के पास बने 'रास मंडल' में रास रचाते हैं। 

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तुलसी के पेड़ बनते हैं गोपियां
 
खास बात यह है कि‍ इस निधि वन में तुलसी का हर पेड़ जोड़े में है। मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती
हैं। 
 
वंशी चोर राधा रानी का भी है मंदिर
 
निधि वन में ही वंशी चोर राधा रानी का भी मंदिर है। यहां के महंत बताते हैं कि जब राधा जी को लगने लगा कि कन्हैया हर समय वंशी ही बजाते रहते हैं, उनकी तरफ ध्यान नहीं देते, तो उन्होंने उनकी वंशी चुरा ली। इस मंदिर में कृष्ण जी की सबसे प्रिय गोपी ललिता जी की भी मूर्ति राधा जी के साथ है। 
 
वन तुलसी की डंडिया तक कोई नहीं ले सकता
 
ऐसी मान्यता है कि इस वन में लगे जोड़े की वन तुलसी की कोई भी एक डंडी नहीं ले जा सकता है। लोग बताते हैं कि‍ जो लोग भी ले गए वो किसी न किसी आपदा का शिकार हो गए। इसलिए कोई भी इन्हें नहीं छूता। 
 
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वन के आसपास बने मकानों में नहीं हैं खिड़कियां

वन के आसपास बने मकानों में खिड़कियां नहीं हैं। यहां के निवासी बताते हैं कि शाम सात बजे के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता। जिन लोगों ने देखने का प्रयास किया या तो अंधे हो गए या फिर उनके ऊपर दैवी आपदा आ गई। जिन मकानों में खिड़कियां हैं भी, उनके घर के लोग शाम सात बजे मंदिर की आरती का घंटा बजते ही बंद कर लेते हैं। कुछ लोग तो अपनी खिड़कियों को ईंटों से बंद भी करा दिया है।

वन में कई लोगों की है समाधि
 
वन के अंदर कई लोगों की समाधि‍ है। इसमें एक पगला बाबा की भी समाधि है। इनके बारे में ऐसी मान्‍यता है कि इन लोगों ने वन के अंदर छि‍पकर राधा-कृष्‍ण की रासलीला देखने का प्रयास किया था। इनमें कुछ लोग तो अंधे होकर पागल हो गए या मर गए। इन लोगों में एक पगला बाबा की समाधि को मंदिर प्रबंधन ने बनवा रखा है।

बाहर मिलता है श्रृंगार का सामान
 
वन देखने आने वाले दर्शनार्थी प्रसाद के रूप में भुना हुआ चना और रामदाना चढ़ाते हैं, लेकिन वन के अंदर राधाजी के 'रंग महल' में केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ता है। इसलिए यहां पर श्रृंगार की डलिया मिलती है, जिसमें सभी साजो-  सामान होते हैं। इसको चढ़ाने की एवज में उन्हें श्रृंगार का सामान मिलता है।

PICS: यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

क्या कहना है जानकारों का
 
विख्यात ज्योतिषाचार्य पवन सिन्हा के मुताबिक शरीर से निकलने के बावजूद कई बार आत्माएं स्थान विशेष पर मौजूद रहती हैं। निधि वन में हजारों वर्षों से तपस्या का पौराणिक प्रमाण मिलता है। इन्हीं तपस्वियों में से कइयों की समाधि यहां मौजूद है। उनका कहना है कि‍ कुछ आत्माओं में ऊर्जा लेवल बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में पारलौकिक गतिविधियां भी वहां होती रहती हैं। 
 
चूंकि निधि वन के बारे में आम जन की एक मानसिकता बनी हुई है कि यहां रात में रुकने वालों का कुछ अहित होता है। ऐसे में वहां जो भी रुकता है और नॉर्मल गतिविधि भी देखता है तो वह अचंभित हो जाता है। इस कारण वह या तो अपना मानसिक संतुलन खो देता है या फिर हार्टअटैक से मर जाता है। 

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PICS: यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

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