Saturday, August 23, 2014

क्यों शुरू हुई गोवर्धन परिक्रमा? ति‍ल-ति‍ल घटता पहाड़ ....


सोजन्य  :  danik bhaskar.com


आस्‍था की मि‍साल है ति‍ल-ति‍ल घटता ये पहाड़, लोग लोट-लोट करते हैं परि‍क्रमा

इंफोग्राफिक के माध्‍यम से जानि‍ए गोवर्धन परि‍क्रमा का रास्‍ता। 
 
मथुरा. गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्‍व है। हिंदू धर्म में मान्‍यता है कि इसकी परिक्रमा करने से मांगी गई सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। यह आस्‍था का अनोखा मि‍साल है। इसीलि‍ए ति‍ल-ति‍ल घटते इस पहाड़ की लोग लोट-लोट कर परि‍क्रमा पूरी करते हैं। हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर यहां आते हैं और 21 कि‍लोमीटर के फेरे लगाते  हैं। श्रद्धाभाव का आलम यह है कि‍ सालोंभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। लोग सर्दी, गर्मी और बरसात की परवाह कि‍ए बि‍ना ही 365 दि‍न यहां श्रद्धा-सुमन अर्पि‍त करते हैं।
 
कहा जाता है कि‍ पांच हजार साल पहले गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था। अब इसकी ऊंचाई करीब 30 मीटर ही रह गई है। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह धीरे-धीरे घट रहा है। इसकी परि‍क्रमा के रास्‍ते में 21 पूजनीय स्‍थल हैं। सभी का अपना इति‍हास है। यहां का माहौल देखकर ही लोग भक्‍ति ‍भावना में डूब जाते हैं। यही कारण है कि‍ तीर्थयात्रि‍यों को इस सफर का पता ही नहीं चलता और अलौकि‍क आनंद की प्राप्‍ति‍ भी हो जाती है।    
क्यों शुरू हुई गोवर्धन परिक्रमा
 
एक बार श्रीकृष्ण गाय चराकर नंदभवन लौटे तो मां यशोदा ने उन्‍हें बताया कि देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी हो रही है। इंद्र वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा मिलता है। इस पर श्रीकृष्‍ण ने मां को सुझाव दिया कि हम सभी को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्‍योंकि इसी पर्वत पर गाएं चरती हैं। 
 
उन्‍होंने कहा कि इंद्र तो कभी दर्शन नहीं देते हैं। इस बात से क्रोधित होकर इंद्र ने भयंकर बारिश कर दी। जब घंटों बारिश नहीं रुकी तो श्रीकृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रज को बारिश और बाढ़ से बचाया। इसके बाद इंद्र का अभिमान शांत हुआ। इस घटना के बाद श्रीकृष्‍ण ने ब्रजवासियों के साथ पर्वत की परिक्रमा की थी। यहीं से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का चलन शरू हो गया। 
आस्‍था की मि‍साल है ति‍ल-ति‍ल घटता ये पहाड़, लोग लोट-लोट करते हैं परि‍क्रमा

तस्‍वीर में: गोवर्धन परि‍क्रमा के लि‍ए श्रद्धाभाव का आलम यह है कि‍ कुछ श्रद्धालु लेटकर इसे पूरा करते हैं।
 
21 कि‍लोमीटर की पैदल परिक्रमा करने में करीब 12 घंटे का वक्‍त लगता है, जबकि वाहन से तीन-चार घंटे में परिक्रमा पूरी हो जाती है। लोग लेटकर भी परिक्रमा करते हैं। यह बेहद कठिन होता है। लेटकर परिक्रमा पूरी करने में सात दिन का वक्‍त लगता है। यदि‍ आपने गोवर्धन परिक्रमा नहीं की है, तो कोई बात नहीं, हम आपको बताते हैं वहां की खास बात .
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साक्षी गोपाल जी कान वाले बाबा मंदिर:

यहां आने वाले लोग गोवर्धन पर्वत पर बने गिरिराज मंदिर में पूजा करते हैं। इसके बाद परिक्रमा के लिए चल देते हैं। गोवर्धन पर्वत से यात्रा शुरू करने के बाद पहला मंदिर यही आता है। यहां पर साक्षी गोपालजी की मूर्ति है। लोग यहां पर भगवान को नमन कर आगे बढ़ते हैं।
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श्रीराधा-गोविंद मंदिर:

इस मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्‍ण के पोते वज्रनाभी ने करवाया था। यह मंदिर प्राचीन काल का बताया जाता है। यहां पर एक भव्‍य गोविंद कुंड भी है। पौराणिक कथाओं के नुसार गिरिराज गोवर्धन की पूजा से इंद्र ने कुपित होकर ऐसी भीषण वर्षा की, जिससे ब्रज डूबने लगा और तब बालकृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर डूबते ब्रज को बचाया था। 
पराजित होकर इंद्र श्रीकृष्‍ण की शरण में आए और कामधेनु के दूध से उनका अभिषेक किया। गौ के बिन्‍दू अर्थात गौ दुग्‍ध से वह स्‍थल एक कुंड के रूप में बदल गया जो कि गोविंद कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां आज भी गौ खुर, बंशी आदि चिन्‍हों से अंकित गिरिशिलाएं हैं।
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राजस्‍थान की सीमा प्रारंभ:
 
गोवर्धन पर्वत की लंबाई करीब 10 किलोमीटर से ज्‍यादा है। इसका आधा हिस्‍सा यूपी में आता है तो दूसरा हिस्‍सा राजस्‍थान में। दुर्गा माता मंदिर से आगे राजस्‍थान की सीमा शुरू हो जाती है। इस मंदिर की देवी को बॉर्डर वाली माता भी कहा जाता है। परिक्रमा मार्ग पर यहां एक विशाल गेट बना हुआ है।
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पूंछरी का लौठा स्थित मंदिर और छतरी:
 
परिक्रमा मार्ग पर पूंछरी लौठा नामक जगह पर बेहद पुराना भवन है, इसे छतरी कहते है। साधू गोविंद दास ने बताया कि यहां पर संत, साधू रहकर श्रीकृष्‍ण और गोवर्धन पर्वत का भजन करते हैं। यहां साधुओं का आना-जाना लगा रहता है। इसी जगह के पास एक मंदिर भी है।
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हरजी कुंड:
 
परिक्रमा मार्ग पर हरजी कुंड है। इस कुंड के संचालन समिति के ध्‍यक्ष विश्‍वनाथ चौधरी ने बताया कि हरजी श्रीकृष्‍ण के सखा थे। वह कृष्‍ण के साथ गाय चराने जाया करते थे। यहां पर दोनों की लीलाएं हुई थी। इसी वजह से इस कुंड का बहुत महत्‍व है। वर्तमान में इस कुंड का पानी गंदा और मटमैला हो गया है। यहां के निवासी उमेश सिंह कहते हैं कि कुंड का रखरखाव ठीक से नहीं किया जा रहा है।

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रूद्र कुंड:

यहां पर विशाल रूद्र कुंड है जहां श्रीकृष्‍ण की लीला हो चुकी है। बाद में यहां पर वैध कब्‍जा हो गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अवैध कब्‍जा हटा दिया गया। अब इस कुंड का निर्माण फिर से हो रहा है।

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राधाकृष्‍ण मंदिर और कलाधारी आश्रम:
 
यहां राधाकृष्‍ण का मंदिर है। इस मंदिर में परंपरा के तहत आश्रम संत सेवा काफी सालों से चल रहा है। करीब 70 साल पहले इसकी स्‍थापना हुई थी। हर दिन यहां पर 40 से 50 संत आते-जाते रहते हैं। यहां पर सौ गाएं पाली गई हैं। संत राघवदास कहते हैं कि हमेशा से यह आश्रम संतों की सेवा में लगा है।
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ठाकुर जी बिहारीजी महाराज मंदिर: 
 
इस मंदिर के महंत सुखदेव दास हरी वंशी वाले ने बताया कि मंदिर बेहद पुराना है और इसके स्‍थापना काल के बारे में कुछ पता नहीं है। इसे मैथिल ब्राह्मण समाज के लोग चलाते हैं।


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श्री लक्ष्‍मी वेंकटेश मंदिर, गऊघाट:
 
इस मंदिर की स्‍थापना वर्ष 1963 में दक्षिण भारतीय परंपरा से हुई थी। यह मानसी गंगा के बीच में स्थित है। स्‍वामी राम प्रपन्‍नाचार्य ने बताया कि पूजा की परंपरा दक्षिण भारतीय है।
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चूतड़ टेका मंदिर:
 
यह बेहद पुराना मंदिर है, जिसे ब नया रूप दे दिया गया है। इसमें हनुमान, राम, लक्ष्‍मण, सीता और राधा-कृष्‍ण की प्रतिमाएं हैं। पंडित केशवदेव शर्मा ने बताया कि जब श्रीराम को लंका जाने के समय समुद्र पर पुल की आवश्‍यकता हुई तो पत्‍थर मंगवाए गए। उस वक्‍त हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत के पास गए। तब द्रोणगिरी ने अपने बेटे गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) को इस कार्य के लिए भेजा। 
 
हनुमान जी गोवर्धन को लेकर समुद्र किनारे जा रहे थे, तभी आदेश हुआ कि अब पत्‍थरों की जरूरत नहीं है। इस बीच हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत को यहीं पर रख दिया। वे यहां बैठे भी थे। इसलिए इस जगह का नाम चूतड़ टेका हो गया। दूसरी कथा के अनुसार भयंकर बारिश के दौरान ब्रज को बचाने के लिए श्रीकृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। इसके बाद श्रीकृष्‍ण ने लोगों के साथ पर्वत की परिक्रमा की थी। इस दौरान श्रीकृष्‍ण यहीं पर बैठे थे। तब से इस जगह को चूतड़ टेका भी कहते हैं।

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यहां पर हनुमान का पंचमुखी रूप है।
 
मंदिर के साथ-साथ यहां पर आश्रम भी बना हुआ है और खंड रामायण पाठ चलती रहती है। मान्‍यतानुसार, यह मंदिर 25 वर्ष पहले बनाया गया था।
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केदारनाथ धाम माता वैष्‍णो देवी मंदिर:
 
इस मंदिर का निर्माण केदारनाथ नामक व्‍यक्ति ने करवाया है। केदारनाथ ने बताया कि 50 साल पहले गौसेवा और धर्मार्थ के लिए मंदिर की स्‍थापना की गई थी।
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राधाकृष्‍ण मंदिर:
 
इस मंदिर को कुछ दशक पहले आम लोगों ने बनवाया है। यहां पर राधाकृष्‍ण की प्रतिमा है।

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उद्धव कुंड:
 
जब श्रीकृष्‍ण मथुरा से द्वारिका चले गए थे, तब उन्‍होंने उद्धव को मथुरा में गोपियों का हाल जानने के लिए भेजा था। बताया जाता है कि यहां पर उद्धव जी महाराज कुंड में विराजमान हैं।

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विट्ठल नामदेव धाम:

परिक्रमा मार्ग पर विट्ठल नामदेव मंदिर है। भक्‍त यहां पर आकर भगवान को नमन करते हैं और फिर आगे बढ़ते हैं।

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राधा कुंड:
 
इस कुंड को राधा ने पने कंगन से खोदकर बनाया था। मान्‍यता है कि राधाकुंड और श्‍याम कुंड में नहाने से गौ हत्‍या का पाप खत्‍म हो जाता है। यहां के पुजारियों ने बताया कि जब श्रीकृष्‍ण की हत्‍या करने की कंस की सारी योजना विफल होती जा रही थी, तब असुर अरिष्‍ठासुर को भेजा गया। उस वक्‍त वे गायों को चराने के लिए गोवर्धन पर्वत पर गए हुए थे। 
 
यहां पहुंचने के बाद अरिष्‍ठासुर ने बैल का रूप धारण किया और गायों के साथ चलने लगा। इसी दौरान श्रीकृष्‍ण ने अरिष्‍ठासुर को पहचान लिया और उसका वध कर दिया। इसके बाद वह राधा के पास गए और उन्‍हें छू लिया। इस बात से राधारानी बेहद नाराज हुईं। उन्‍होंने कहा कि गौ हत्‍या करने के बाद छूकर मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया। इस घटना के बाद राधारानी ने कंगन से खोदकर कुंड की स्‍थापना की। उन्‍होंने मानसी गंगा से पानी लेकर इसे भरा। इसके बाद सभी तीर्थों को कुंड में आने की अनुमति हुई। यहां राधारानी और उनकी सहेलियों ने स्‍नान कर गौ हत्‍या का पाप धोया।
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श्‍याम कुंड:
 
श्रीकृष्‍ण ने गौ हत्‍या का पाप खत्‍म करने के लिए छड़ी से कुंड बनाया। उन्‍होंने सभी तीर्थ को उसमें विराजमान किया और इसमें स्‍नान भी किया। पुरोहित राम नारायण ने बताया कि कार्तिक महीने की कृष्‍णाष्‍टमी के दिन यहां नहाने का लग महत्‍व है।
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कुसुम सरोवर:
 
यहां पर कुसुम वन है। श्रीकृष्‍ण द्वारा राधा जी की वेणी गूंथी जाने के स्‍थल के रूप में यह प्रसिद्ध है। यह सरोवर प्राचीन है। पहले यह कच्‍चा कुंड था। इसे आरछा नरेश राजा बीर सिंह जू देव ने वर्ष 1819 में पक्‍का करवाया था। इसके बाद वर्ष 1723 में भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने इसे कलात्‍मक स्‍वरूप प्रदान किया। उनके पुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने वर्ष 1767 में यहां पर कई छतरियों का निर्माण करवाया था।

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श्‍याम कुटी:
 
यह स्‍थल प्राचीन काल का है। यहां पर श्रीकृष्‍ण ने लीलाएं की थी। वर्तमान में यहां का नजारा उजड़ा-सा लगता है। ब श्रीदौलतराम रयात चैरीटेबल ट्रस्‍ट यहां पर वृक्षारोपण और सौंदर्यीकरण का काम करवा रहा है।

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मानसी गंगा मंदिर:
 
इस मंदिर में मानसी गंगा की प्रतिमा है और श्रीकृष्‍ण के स्‍वरूपों की भी पूजा होती है। मान्‍यता है कि जब गोवर्धन पर्वत काभिषेक हो रहा था, उस वक्‍त गंगा के लिए पानी की आवश्‍यकता हुई। तब सभी चिंता में पड़ गए कि इतना गंगाजल कैसे लाया जाए। इस दौरान भगवान ने अपने मन से गंगा को गोवर्धन पर्वत पर उतार दिया। इसके बाद से ही इसे मानसी गंगा कहते हैं। पहले यह छह किलोमीटर लंबी गंगा हुआ करती थी लेकिन अब यह सिमट कर कुछ ही दूर में रह गई है
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मंदिर गिरिराज जी:
 
यहां पर गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) का मंदिर है। इसमें निरंतर पूजा चलती रहती है। मंदिर के ंदर एक विशाल कुंड बना हुआ है जिसमें गोवर्धन पर्वत का स्‍वरूप रखा हुआ है।

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परिक्रमा समाप्‍त:
 
इस स्‍थान पर आकर भक्‍तों की परिक्रमा समाप्‍त होती है। यहां पर एक विशाल गेट बना हुआ है। परिक्रमा पूरी कर लोग खुद को धन्‍य मानते हैं। 
 
ऐसे स्‍थापित हुआ गोवर्धन पर्वत
 
सतयुग में रावण से युद्ध करने के लिए श्रीराम को लंका जाना था। इसके लिए समुद्र में पुल बनाने का फैसला हुआ। ऐसे में हनुमानजी और न्‍य वानरों को पत्‍थर लाने का आदेश दिया गया। उनके आदेश पर हनुमानजी द्रोणगिरी पर्वत के पास गए। उन्‍होंने हनुमान से अपने वृद्धावस्‍था के बारे में बताया और शर्त रखकर कहा कि‍ श्रीराम की कार्य सेवा में उनके दो पुत्र गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) और रत्‍नागिरी पर्वत को ले जाएं। शर्त में उन्‍होंने हनुमानजी से कहा कि‍ वे श्रीराम से मि‍लना चाहते हैं। इसलि‍ए बेटों को ले जाने के बाद श्रीराम से उन्‍हें मिलवाया जाए। 
 
हनुमान गिरिराज को लेकर समुद्र किनारे जाने के लिए निकल पड़े, तभी आदेश आया कि पत्‍थरों की आवश्‍यकता पूरी हो गई है। जिसके पास जो पत्‍थर है, वहीं पर उसे त्‍याग दें। इसके बाद हनुमानजी ने ब्रज में गोवर्धन पर्वत को स्‍थापित कर दिया। ऐसा किए जाने पर गोवर्धन ने हनुमान से कहा कि यह तो वादाखिलाफी है। तब श्रीराम के निर्देशानुसार हनुमान ने कहा कि द्वापर युग में श्रीकृष्‍ण के रूप में आकर श्रीराम उनसे मिलेंगे।

सोजन्य  :  danik bhaskar.com

LINK:  

http://www.bhaskar.com/article-hf/UP-govardhan-parikrama-guide-janmashtami-latest-news-hindi-4719898-PHO.html




Tuesday, August 19, 2014

यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

PICS: यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

तस्‍वीर में: वृंदावन का नि‍धि‍वन, कहा जाता है कि‍ यहां हर रात होती है राधा-कृष्‍ण की रासलीला।
 
लखनऊ. श्रीकृष्ण की तरह ही उनकी लीलाएं भी अपरम्‍पार हैं। कृष्ण लीलाओं के चर्चे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। उन्हीं में से एक लीला है रासलीला। मान्यता है कि वृंदावन में स्थित निधिवन में गोपियों संग कृष्ण रास रचाते थे और यह क्रम आज भी जारी है। इसलिए सुबह से दर्शन के लिए खुला रहने वाला निधि वन शाम को बंद हो जाता है। वहां कोई नहीं रुकता। 
 
वहां के बारे में मान्यता यह भी है कि जो भी रुका उसने या तो अपना मानसिक संतुलन खो दिया या फिर उसकी मौत हो गई। निधि वन के मुख्य गोसाईं भीख चंद्र गोस्वामी की मानें तो बंदर और चिड़िया भी शाम होते ही इसे खाली कर देते हैं। दि‍नभर उनकी मौजूदगी के बाद शाम होते ही सन्‍नाटा छा जाता है। उनका कहना है कि सिर्फ निधि वन ही नहीं बल्कि थोड़ी दूर स्थित सेवाकुंज में भी गोपाल-कृष्णा रास रचाते हैं जोकि राधा रानी का मंदिर है। 
 
छिपकर देखी रासलीला और खो गया मानसि‍क संतुलन 
 
गोसाईं भीख चन्द्र गोस्वामी एक वाक्य याद करते हुए बताते हैं कि करीब दस साल पहले संतराम नामक एक राधा-कृष्‍ण का भक्त था। वह जयपुर से आया था। वह भगवान की भक्ति में इतना लीन हो गया कि उसने रासलीला देखने की ठान ली और चुपके से नि‍धि‍वन में छिपकर बैठ गया। सुबह जब मंदिर के पट खुले तो वह बेहोश था। संतराम जब होश में आया तो वह अपना मानसिक संतुलन खो चुका था। 
 
संतराम को उसके परिवार के पास जयपुर भिजवाने वाले वृंदावन के स्थानीय निवासी कृष्णा शर्मा ने कहा- 'ऐसी कई घटनाएं मैंने भी सुनी हैं, लेकिन संतराम के साथ जो हुआ उसका मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं। वह कहते हैं कि करीब पांच साल बाद संतराम ठीक होकर फिर वृंदावन आया था। जैसे ही वह निधिवन की ओर बढ़ा, एक बार फिर वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा।'

PICS: यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

पवित्र है निधिवन की भूमि
 
निधि वन की भूमि इतनी पवित्र है कि वहां जो पेड़ आसमान की ओर बढ़ने चाहिए, उनकी डालें नीचे जमीन की ओर आती हैं। इस बाबत मुख्य गोसाईं भीख चन्द्र गोस्वामी कहते हैं कि यहां नंद गोपाल की चरणों में सिर्फ भक्त ही नहीं, बल्कि पेड़ पौधे भी उनकी मिट्टी में ही समा जाना चाहते हैं। इसलिए यह पेड़ हमेशा जमीन की ओर बढ़ते हैं। आलम यह है कि रास्ता बनाने के लिए इन पेड़ों को डंडे के सहारे रोका गया है।

राधा और कृष्ण के लिए सजती है सेज
 
भीख चन्द्र गोस्वामी बताते हैं कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, निधि वन के अंदर बने 'रंग महल' में रोज रात को कन्हैया आते हैं। रंग महल में राधा और कन्हैया के लिए रखे गए चंदन की पलंग को शाम सात बजे के पहले सजा दिया जाता है। पलंग की बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है।
 
सुबह पांच बजे जब 'रंग महल' का पट खुलता है तो बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली, दातुन कुची
हुई और पान खाया हुआ मिलता है। ऐसी मान्यता है कि‍ रात के समय जब कन्हैया आते हैं तो राधा जी रंग महल में श्रृंगार करती हैं। चंदन की पलंग पर कन्हैया आराम करते हैं। उसके बाद राधा जी के संग 'रंग महल' के पास बने 'रास मंडल' में रास रचाते हैं। 

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तुलसी के पेड़ बनते हैं गोपियां
 
खास बात यह है कि‍ इस निधि वन में तुलसी का हर पेड़ जोड़े में है। मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती
हैं। 
 
वंशी चोर राधा रानी का भी है मंदिर
 
निधि वन में ही वंशी चोर राधा रानी का भी मंदिर है। यहां के महंत बताते हैं कि जब राधा जी को लगने लगा कि कन्हैया हर समय वंशी ही बजाते रहते हैं, उनकी तरफ ध्यान नहीं देते, तो उन्होंने उनकी वंशी चुरा ली। इस मंदिर में कृष्ण जी की सबसे प्रिय गोपी ललिता जी की भी मूर्ति राधा जी के साथ है। 
 
वन तुलसी की डंडिया तक कोई नहीं ले सकता
 
ऐसी मान्यता है कि इस वन में लगे जोड़े की वन तुलसी की कोई भी एक डंडी नहीं ले जा सकता है। लोग बताते हैं कि‍ जो लोग भी ले गए वो किसी न किसी आपदा का शिकार हो गए। इसलिए कोई भी इन्हें नहीं छूता। 
 
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वन के आसपास बने मकानों में नहीं हैं खिड़कियां

वन के आसपास बने मकानों में खिड़कियां नहीं हैं। यहां के निवासी बताते हैं कि शाम सात बजे के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता। जिन लोगों ने देखने का प्रयास किया या तो अंधे हो गए या फिर उनके ऊपर दैवी आपदा आ गई। जिन मकानों में खिड़कियां हैं भी, उनके घर के लोग शाम सात बजे मंदिर की आरती का घंटा बजते ही बंद कर लेते हैं। कुछ लोग तो अपनी खिड़कियों को ईंटों से बंद भी करा दिया है।

वन में कई लोगों की है समाधि
 
वन के अंदर कई लोगों की समाधि‍ है। इसमें एक पगला बाबा की भी समाधि है। इनके बारे में ऐसी मान्‍यता है कि इन लोगों ने वन के अंदर छि‍पकर राधा-कृष्‍ण की रासलीला देखने का प्रयास किया था। इनमें कुछ लोग तो अंधे होकर पागल हो गए या मर गए। इन लोगों में एक पगला बाबा की समाधि को मंदिर प्रबंधन ने बनवा रखा है।

बाहर मिलता है श्रृंगार का सामान
 
वन देखने आने वाले दर्शनार्थी प्रसाद के रूप में भुना हुआ चना और रामदाना चढ़ाते हैं, लेकिन वन के अंदर राधाजी के 'रंग महल' में केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ता है। इसलिए यहां पर श्रृंगार की डलिया मिलती है, जिसमें सभी साजो-  सामान होते हैं। इसको चढ़ाने की एवज में उन्हें श्रृंगार का सामान मिलता है।

PICS: यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

क्या कहना है जानकारों का
 
विख्यात ज्योतिषाचार्य पवन सिन्हा के मुताबिक शरीर से निकलने के बावजूद कई बार आत्माएं स्थान विशेष पर मौजूद रहती हैं। निधि वन में हजारों वर्षों से तपस्या का पौराणिक प्रमाण मिलता है। इन्हीं तपस्वियों में से कइयों की समाधि यहां मौजूद है। उनका कहना है कि‍ कुछ आत्माओं में ऊर्जा लेवल बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में पारलौकिक गतिविधियां भी वहां होती रहती हैं। 
 
चूंकि निधि वन के बारे में आम जन की एक मानसिकता बनी हुई है कि यहां रात में रुकने वालों का कुछ अहित होता है। ऐसे में वहां जो भी रुकता है और नॉर्मल गतिविधि भी देखता है तो वह अचंभित हो जाता है। इस कारण वह या तो अपना मानसिक संतुलन खो देता है या फिर हार्टअटैक से मर जाता है। 

PICS: यहां आज भी रात को राधा संग रास रचाते हैं कान्हा, जो भी देखा हो गया पागल!

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Monday, August 18, 2014

जानें, भगवान कृष्ण की 16,108 पत्नियों का सच


Photo - जानें, भगवान कृष्ण की 16,108 पत्नियों का सच



























कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की 16,108 पत्नियां थीं। वैसे तो इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा कुछ ऐसी है। आइए जानें, उनकी इतनी सारी पत्नियों की क्या है कहानी...


1. कृष्ण की पहली पत्नी थी रुक्मणि, जिनका हरण के बाद उनसे कृष्ण ने विवाह किया। दरअसल विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणि मन ही मन कृष्ण की हो चुकी थीं, लेकिन रुक्मणि के भाई रुक्मणि का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ करना चाहते थे। रुक्मणि की मर्जी से उनका हरण कर कृष्ण ने उनके साथ विवाह रचाया।

2.कृष्ण की दूसरी पत्नी निशाधराज जाम्बवान की पुत्री जाम्बवती थी। उनकी तीसरी पत्नी सत्राजीत की पुत्री सत्यभामा हुईं, जिसे सत्राजीत ने कृष्ण को तब सौंपा जब सत्राजीत द्वारा कृष्ण पर कई आरोप लगाए गए और जब उन्हें पता चला कि ये आरोप बेबुनियाद थे तो शर्मिंदगी के कारण उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह कृष्ण संग रचा दिया।
 
3. इसके बाद एक स्वयंवर में पहुंचे कृष्ण राजकुमारी मित्रबिन्दा को लाए और विवाह रचाया, जो उनकी चौथी पत्नी बनीं। फिर कौशल का राजा नग्नजीत के सात बैलों को कृष्ण ने एक साथ नाथ दिया और उनकी कन्या सत्या से विवाह किया। फिर कैकेय की राजकुमारी भद्रा से उनका विवाह हुआ।

4. भद्रदेश की राजकुमारी लक्ष्मणा कृष्ण को चाहती थी, लेकिन परिवार उनका परिवार कृष्ण संग विवाह के खिलाफ था इसलिए कृष्ण को उन्हें भी हरणा पड़ा। 
लाक्षागृह से बच निकलने पर पांडवों से मिलने कृष्ण इंद्रप्रस्थ पहुंचे। इस दौरान अर्जुन के साथ कृष्ण कहीं विहार पर निकले, जहां सूर्य पुत्री कालिन्दी भगवान कृष्ण को पति स्वरूप पाने के लिए तपस्या कर रही थी। कृष्ण उनकी आराधना से मुख मोड़ न सके और आखिरकार उनसे भी विवाह कर लिया। 
इस तरह कुल मिलाकर कृष्ण की 8 पत्नियां हुईं, रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा।

5. एक बार स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने कृष्ण से प्रार्थना की, 'प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आम लोगों की खूबसूरत कन्याओं का हरण कर उन्हें अपने यहां बंदीगृह में डाल रखा है। इस संकट से आप ही मुक्ति दिला सकते हैं।

6. इंद्र की प्रार्थना स्वीकार कर श्रीकृष्ण अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरुड़ पर सवार हो प्रागज्योतिषपुर पहुंचे। वहां पहुंचकर भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से सबसे पहले मुर दैत्य और उसके पुत्रों का संहार किया। चूंकि भौमासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा को सारथी बनाया और फिर कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से उसका वध कर डाला।

7. इसके बाद भौमासुर के बेटे को गद्दी पर बिठाकर भौमासुर द्वारा हरण कर लाई गईं 16,100 कन्याओं को कैद से मुक्त कराया। सालों से भौमासुर के कैद में रहने के कारण इन्हें कोआ अपनाने को तैयार नहीं था, इसलिए आखिरकार कृष्ण ने सभी को आश्रय दिया और 16,100 कन्याओं ने कृष्ण को पति स्वरूप स्वीकार कर उनकी भक्ति में लीन हो गईं।

Monday, August 11, 2014

मात्र 10 दिन में PASSPORT बनवाने का आसान तरीका।





आजकल हर कोई विदेश जाने के सपने देखता है। विदेश में पढ़ने की बात हो या फिर बात हो घूमने की लोगों का ध्यान ऐसी चीजों की तरफ जरूर जाता है। अब अगर विदेश जाने की बात आए तो बिना पासपोर्ट आपकी दाल गलने वाली नहीं। गाहे-बगाहे आजकल लोग पासपोर्ट बनवाने के लिए पासपोर्ट ऑफिस के चक्कर लगा ही लेते हैं।

पासपोर्ट बनवाना आजकल एक नया ट्रेंड बन गया है। टीनएज में आने वाला हर बच्चा चाहता है कि उसके पास भी पासपोर्ट हो अब ऐसे में सबसे जरूरी हो जाता है पासपोर्ट के बारे में जानकारी होना। कई लोग एक्स्ट्रा पैसे देकर तत्काल में 10 दिन में पासपोर्ट बनवाना पसंद करते हैं। कई लोग तो सिर्फ पासपोर्ट बनवाने की प्रक्रिया जानने के लिए पासपोर्ट ऑफिस के चक्कर लगाते रहते हैं। ऐसा ना हो इसलिए हम आज आपको बताने जा रहे हैं ऑनलाइन पासपोर्ट बनवाने का आसान तरीका।





  1. सबसे पहले तो आपको लॉगइन करना होगा पासपोर्ट बनवाने के लिए बनाई गई ऑफिशियल साइट पर।  पासपोर्ट सेवा केन्द्र की साइट पर आप इस लिंक से जा सकते हैं।http://passportindia.gov.in/AppOnlineProject/welcomeLinkइस साइट में आपको पासपोर्ट बनवाने से जुड़े कई सारे काम कर सकते हैं। 
  2. जैसे ऑनलाइन फॉर्म को डाउनलोड करना, भरना और अपोइंटमेंट जैसे कई काम आप कर सकते हैं पासपोर्ट बनवाने के लिए आपको सबसे पहले डाउनलोड करना होगा एक ऑनलाइन फॉर्म। यह फॉर्म पीडीएफ फॉर्मेट में आपके कम्प्यूटर में सेव हो जाएगा।
  3.  इस फॉर्म को बड़े ध्यान से भरिएगा। एक गलती और आपका फॉर्म रिजेक्ट भी हो सकता है। फॉर्म डाउनलोड करने के लिए आपको "Download e-Form" लिंक पर क्लिक करना होगा।
  4. फॉर्म भरने के बाद बारी आती है इसे सेव करने की। इसके लिए फॉर्म के नीचे दिए Validate & Save (वैलिडेट एंड सेव) बटन पर क्लिक करना होगा। ऐसा करने से आपका फॉर्म एक XML फाइल में तब्दील हो जाएगा। यह XML फाइल ही आपको वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी।
  5. अब पासपोर्ट सेवा पोर्टल पर लॉग इन करना होगा। इसके लिए आपको पोर्टल पर एक आईडी बनानी होगी। आपके पासवर्ड में अल्फान्यूमैरिक डिजिट का होना जरूरी होता है।
  6.  इस आईडी से आपको पासपोर्ट पोर्टल में लॉग ऑन करना पड़ेगाअब आपको अपनी XML फाइल उस साइट पर अपलोड करनी होगी। इसके लिए "Upload e-Form" लिंक पर क्लिक करना होगा। यह लिंक सिर्फ आपकी XML फाइल ही एक्सेप्ट करेगा।
  7. इसके बाद आएगा सबसे महत्वपूर्ण काम, ये है पासपोर्ट सेवा केन्द्र में आपकी अपोइंटमेंट फिक्स करने का। इस काम के लिए आपको अपनी आईडी से "Schedule Appointment" बटन पर क्लिक करना होगा। आजकल ऑनलाइन पेमेन्ट करना जरूरी हो गया है।
  8.  इसके लिए आपको ऑनलाइन पैसे जमा करवाने होंगे जिसके बाद आपको अपोइंटमेंट लेनी होगीआजकल ऑनलाइन पेमेन्ट करना जरूरी हो गया है। इसके लिए आपको ऑनलाइन पैसे जमा करवाने होंगे जिसके बाद आपको अपोइंटमेंट लेनी होगी।
  9. इसके बाद निर्धारित समय में पासपोर्ट सेवा केन्द्र जाकर अपने सारे दस्तावेज दिखाने होंगे। इसके लिए पहले "Print Application Receipt" बटन पर क्लिक करके आपको अपना रिफरेंस नंबर लेना होगा जो अपोइंटमेंट के समय आपके काम आएगा।
  10.  इसके बाद पासपोर्ट पुलिस वेरिफिकेशन का नंबर आएगा।पुलिस वेरिफिकेशन आपके पासपोर्ट फॉर्म में दिए गए ठिकाने पर होगा। इसके बाद निश्चित समय लेकर आपका पासपोर्ट आप तक पहुंचा दिया जाएगा।